Poem on Village in Hindi
मेरा गांव मुझको बहुत याद आता हैबार बार आकर सपनों में सताता है
कच्चे घर को जब माँ गोबर से लिपति थी
पड़ जाते थे पांव तब म बहुत डांटती थी
मगर डांट सुनकर भी में बहुत हँसता था
खुलकर माँ को खूब चिढ़ाया करता था
सचमुच वो बचपन आज भी मुझे बहुत लुभाता है
मेरा गाँव मुझको बहुत याद आता है ......
कुएं के पास वो आम, आम से लगी डाली
जिस पर रहती थी पिता की निगाह सवाली
मगर चुपके -चुपके जब आम को चुराता था
पता चलने पर फिर पिता की मार खाता था
यह सब कुछ मुझे कितना आनंद देता है
मेरा गाँव मुझको बहुत याद आता है....
होती थी चैपाल पर जब रंगों की बौछार
तब रहता था उसमें कितना आपसी प्यार
लोगों के संग संग में भी खाता था फाग
चाहे गले से निकले बेसुरा राग।
वह फागुन तो मुझे आज भी रुलाता है
मेरा गाँव मुझको बहुत याद आता है .....
खेलता था कबड्डी सांस टूट जाती थी
गुरूजी की सीटी आउट की बज जाती थी
कबड्डी कबड्डी फिर भी करता रहता है
खेल के नियमों को भंग किया करता था
अब भी गुरूजी का डंडा नज़र आता है
मेरा गाँव मुझको बहुत याद आता है .....(लेखक - रमेश मनोहरा )
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